सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

उत्तरप्रदेश में पार्टियों ने किए अनगिनत वादे

अभी देश में पांच राज्यों पंजाब, गोवा, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड में विधानसभा चुनाव हो रहे है। लेकिन इन पांच राज्यों में केवल उत्तरप्रदेश में ही काफी जोर-आजमाइश चल रही है। इसकी एक वजह यह है कि उत्तरप्रदेश से होकर ही केन्द्र की सत्ता का रास्ता भी तय होता है। इन चुनावों को आगामी लोकसभा चुनाव से भी जोड़कर देख जा रहा है। इन चुनावों में जीतने के लिए सभी पार्टियों ने वादों की झड़ी लगा दी है।

कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में जारी किए घोषणा पत्र में 5 साल में 20लाख नौकरियां देने, अत्यंत पिछड़े वर्ग को आरक्षण में आरक्षण देने, 1000 कौशल विकास केन्द्र खोलने, नागरिक चार्टर लाने का, मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के तहत लाने, पूर्वाचल व तराई जैसे पिछड़े अंचलों के विकास के लिए विशेष पैकेज लाने, किसानों को निर्बाध बिजली, नया भूमि अधिग्रहण कानून, बाबरी मस्जिद मामले का न्यायसंगत हल और लड़कियों के हाई स्कूल पास करने पर 1लाख देने का भी वादा किया है।

वहीं भाजपा ने भी अपने घोषणा पत्र में राम मंदिर बनाने का, कांग्रेस के आरक्षण का विरोध करने, किसानों को 1फीसदी ब्याज दर पर दो लाख रूपए के कृषि कर्ज व किसानों के एक लाख रूपए कर्ज माफ करने, किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए कृषक आयोग का गठन, 1000 करोड़ का कोष किसानों के लिए, 5साल में 1करोड़ नए अवसर सृजित करवाने का, बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने, मुख्यमंत्री को लोकायुक्त के तहत लाने, सिटीजन चार्टर लाने, महिलाओं को नौकरी में 33 फीसदी आरक्षण देने, छात्रों को लैपटॉप देने, गोवंश की हत्या रोकने और बलिकाओं के लिए लाडली योजना लाने का वादा किया है।

तो समाजवादी पार्टी ने भी छात्रों को टैबलेट और लैपटॉप देने का, किसान की दुर्घटना में मृत्यु पर 5लाख रुपये का मुआवजा देने का, किसानों व बुनकरों को बिजली व पानी मुफ्त देने का वादा, साइकिल- रिक्शा चालकों को बैटरी व मोटर मुहैया कराने का वादा किया है।

दूसरी ओर, लोजपा के रामविलास पासवान ने भी हर वर्ग को रोटी, शिक्षा, मकान देने, गरीब सवर्णों को नौकरी व शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के हर भूमिहीन परिवार को 12 डिसमिल का आबंटन का वादा किया है।

इन सभी पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्रों को देखकर लगता है कि वादे करके ही मतदाताओं को लुभाना और वोट बटोरना है। इस चुनाव में छात्रों को भी लुभाने का पूरा प्रयास किया गया है। पार्टियों की बड़े-बड़े वादे करने की नीति शुरू से है लेकिन इस बार के चुनाव में भी अनगिनत वादे कर दिए। जबकि इन पार्टियों के पिछले पांच वर्षों के पक्ष और विपक्ष की भूमिका को नहीं देख जा रहा है। तो वही एक बार फिर चुनावों में बाबरी मस्जिद के मुद्दे को उठाया जा रहा है। इन चुनावों में भी भ्रष्ट्राचार और कानून व्यस्था कोई अहम मुद्दा नहीं बनाया गया है। इन मुद्दों को देखकर कहा जा सकता है कि अब भी बड़े मुद्दे चुनाव से दूर है।