बुधवार, 14 अगस्त 2013

सरकार के विज्ञापनों में विकास दिखता है



भाईया दिल्ली में चुनाव होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। इसलिए दिल्ली सरकार अपनी उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही है। सरकार ने बस स्टैडों को विकास की उपलब्धियों वाले विज्ञापनों से पाट दिया है। विज्ञापनों में सरकार कह रही है कि देखो जनता, पिछले दस सालों में हमने कितना विकास किया। सच है, भई विज्ञापनों के आंकड़ों में तो विकास दिख ही रहा है। खैर, इन विज्ञापनों से बस स्टैंडों का विकास भी हो ही गया। रात में बिजली की चमक से चमकते सरकार की उपलब्धियों के इन विज्ञापनों से मानो ऐसा लगता है जैसे हर तरफ विकास ही विकास हो रहा है।
यह तो हुई सरकार के विज्ञापनों में विकास की बात। अब बात कर लें उस विकास की, जिसे सरकार शायद बताने में हिचक  रही है। वह विकास है, अपराध के ग्राफ का ऊपर की ओर बढ़ना। भई, जैसे सरकार विज्ञापनों में आंकड़ों के बढ़ने को विकास बता रही तो भला अपराध के आंकड़े भी तो बढ़े हैं, फिर उन्हें विकास बताने से परहेज क्यों। सरकार को वोट चाहिए और वोट, अपराध के विकास को बताने से तो कतई नहीं मिलेंगे। सरकार बता रही है कि अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ गई, बिजली ग्राहकों की संख्या बढ़ गई और फ्लाईओवर भी पहले के मुकाबले बढ़ गए है और न जाने क्या-क्या।   
लगता है कि सरकार शायद ये भूल गई है कि लापता बच्चों की संख्या भी बढ़ती जा रही है, बलात्कार के मामले भी बढ़ रहे हैं और झपटमारी की घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं। और तो और दिल्ली के तालाब भी अब पहले के मुकाबले ज्यादा सूखते जा रहे। मीड-डे मील के 100 से 88 नमूने फेल हो रहे हैं। भई एक बात अब मान ही लेनी चाहिए कि चौतरफा विकास ही विकास है और कुछ नहीं। चाहे सरकार के विकास के बढ़ते आंकड़े या फिर क्राइम की रिपोर्ट के बढ़ते आंकड़े या मीड-डे मील के फेल होने वाले नमूनों की बढ़ती संख्या देख लीजिए। इन सब में विकास  ही नजर आएगा और कुछ नहीं।
जनता कहती रहती है कि विकास नहीं हो रहा है, भई यहां तो विकास ही विकास हो रहा है। फिर क्यों जनता कहती है कि विकास नहीं हो रहा। शायद जनता अभी तक सरकार के आंकड़ों वाले विज्ञापनों को समझ ही नहीं पाई। खैर, कोई बात नहीं अभी चुनाव में कुछ समय है, तब तक जनता भी रोजाना इन विज्ञापनों को देखकर समझ ही जाएगी कि विकास हो रहा है।