रविवार, 13 जुलाई 2014

छात्रों का एक साल बर्बाद करने वाली व्यवस्था

                                                -संजय कुमार बलौदिया

दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) का परीक्षा परिणाम  हर बार स्नातकोत्तर में दाखिले की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आता है। इस वजह से विद्यार्थियों को रेगुलर स्नातकोत्तर कोर्स में दाखिला नहीं मिल पाता है। इस वर्ष एसओएल के छात्र-छात्राओं ने रिजल्ट के देर से आने को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया। वहीं एसओएल में पुनर्मूल्यांकन करवाने वाले छात्र-छात्राओं का रिजल्ट भी देरी से आया। जिससे उन छात्रों को कहीं दाखिला नहीं मिला और उनका एक साल बर्बाद हो गया। 

दिल्ली विवि में चार वर्षीय पाठ्यक्रम को लागू करने के बाद से पुनर्मूल्यांकन की प्रक्रिया को खत्म कर दिया गया। लेकिन दिल्ली विवि के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग में चारवर्षीय पाठ्यक्रम न होने के कारण वहां पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था है। इस व्यवस्था का लाभ उठाने और अपना एक साल बचाने के लिए कुछ छात्र-छात्राएं पुनर्मूल्यांकन करवाते हैं। मैंने आरटीआई के जरिए पुनर्मूल्यांकन के संबंध में जानकारी जुटाई। मई-जून 2013 (चौथे सेमेस्टर) में एम.ए राजनीति विज्ञान के 38 छात्र-छात्रों और एम.ए हिंदी के 5 छात्र-छात्राओं ने पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन किया। एम.ए राजनीति विज्ञान में पुनर्मूल्यांकन में 38 में से 11 छात्र और एम.ए. हिन्दी में 5 में से 1 छात्र पास हो गया। इससे पता चलता है कि 25 से 30 फीसदी छात्र पुनर्मूल्यांकन के दौरान पास हो रहे है। इसे एक उदाहरण के रूप में लिया जाए तो अन्य विषयों के छात्र-छात्राओं ने भी पुनर्मूल्यांकन करवाया होगा। इस एक आंकड़े से यह भी समझा जा सकता है कि दिल्ली विवि के एसओएल में कैसे छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है। एक बात तो यह स्पष्ट होती है कि उत्तरपुस्तिकाओं का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं होता है। दूसरी बात यह है पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था के जरिए एक तरफ छात्रों को लूटा जा रहा और वहीं छात्रों का साल भी नहीं बच रहा है।

पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था को लागू करने के पीछे उद्देश्य छात्रों का एक साल बचाना था। पुनर्मूल्यांकन के नियमानुसार 45 से 60 दिन के भीतर रिजल्ट आ जाना चाहिए, लेकिन एसओएल के जिन छात्रों पुनर्मूल्यांकन के लिए आवेदन किया, उनका रिजल्ट 2 महीने 18 दिन में आया। जैसा कि एसओएल का परीक्षा परिणाम देरी से आता है, ठीक उसी तर्ज पर पुनर्मूल्यांकन करवाने वाले छात्रों का रिजल्ट भी देरी से आया। जिससे उन छात्रों को कहीं भी दाखिला नहीं मिला और उनका एक साल बर्बाद हो गया, तो पुनर्मूल्यांकन व्यवस्था के होने का क्या मतलब रह जाता है। पुनर्मूल्यांकन की व्यवस्था होना ही काफी नहीं, उस व्यवस्था का छात्र-छात्राओं को लाभ भी मिलना चाहिए।

 ठीक इसी तरह का मामला दिल्ली विवि के कॉलेजों के छात्रों ने उठाया था जब एक खास विषय में उन्हें कम अंक दिए गए थे और उन्होंने पुनर्मूल्यांकन की मांग भी की थी। पुनर्मूल्यांकन के समय को लेकर मार्च 2011 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) को कक्षा 12 वीं के छात्रों के अंकों को पुनर्मूल्यांकन समयबद्ध ढंग से पूरा करने के लिए एक तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया था। लेकिन लगता है कि उच्च न्यायालय के निर्देश से कोई सबक दिल्ली विवि के स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग ने नहीं लिया।