बुधवार, 4 सितंबर 2013

आंकड़ों में उपलब्धियों के मायने


दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। इन चुनाव को देखते हुए राज्य सरकारें अपनी उपलब्धियों के जरिए जनता को रिझाने में जुटी है। जैसा कि हर बार होता है, लेकिन इस बार चुनाव के लिए तैयार किए विज्ञापनों में एक बदलाव देखने को मिल रहा। दिल्ली और राजस्थान के कुछ विज्ञापन अखबारों और बस स्टैंडों पर देखने को मिलें। इन विज्ञापनों में सरकार की उपलब्धियों को आंकड़ों के जरिए बताया जा रहा है।

भूमंडलीकरण के दौर में आंकड़ों का खेल ही विकास का आईना बना हुआ है। आज सूचना क्रांति के युग में जहां एक खबरदाता सिर्फ सूचनादाता बनकर रह गया है। यह खबरनवीस कहा जाने वाला व्यक्ति हमें आंकड़ों के जरिए खबर के नाम पर सिर्फ सूचनाएं दे रहा है और सूचनाओं के लिए आंकड़ों का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। आंकड़ों से सूचनाएं बनाने की प्रवृत्ति पर शोध पत्रिका जन मीडिया में छपी एक टिप्पणी में यह उल्लेख किया गया है कि आंकड़ों के बीच तुलना करने की क्षमता विकसित कर ली जाए, तो जन संचार माध्यमों के लिए तरह-तरह की सामग्री तैयार की जा सकती है।

दिल्ली सरकार के एक विज्ञापन के अनुसार दिल्ली में अब 44 लाख छात्रों का नामांकन है। इस विज्ञापन के आंकड़ों से उपलब्धि तो स्पष्ट तौर दिखाई जा रही है। लेकिन इस उपलब्धि के आंकड़ों से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि निजी और सरकारी स्कूलों में नामांकन की स्थिति क्या रही। लड़के और लड़कियों के नामांकन की स्थिति क्या है। दिल्ली में जिस अनुपात में आबादी बढ़ रही, क्या उसी अनुपात में स्कूलों में नामांकन हो रहा है। साथ ही सिर्फ नामांकन से शिक्षा क्षेत्र की स्थिति भी स्पष्ट नहीं हो पाती है। इसी प्रकार राजस्थान के विज्ञापनों में भी आंकड़ों के जरिए उपलब्धियों को बताया जा रहा है। इस प्रकार समझा जा सकता है कि आंकड़े विकास को बताने में सहायक हो सकते हैं, लेकिन आंकड़ों से विकास को परिभाषित नहीं किया जा सकता।
आंकड़ों का इस्तेमाल हम अपनी सुविधानुसार करते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर दिल्ली में मरीजों की संख्या बढ़ जाएं, तो उस बढ़े हुए आंकड़े को विकास नहीं कहा जाएगा। लेकिन जब अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बढ़ जाएगी, तो उस बढ़े हुए आंकड़े को विकास कहा जाएगा। आंकड़ों का इस्तेमाल एक उद्देश्य के साथ किया जाता है। एक पत्रकार अपनी स्टोरी के लिए आंकड़ों का प्रयोग करता है। वहीं इस बार सरकार अपनी उपलब्धियों को बताने वाले विज्ञापन के लिए आंकड़ों का इस्तेमाल कर रही हैं।

जनसंचार माध्यम ही सरकार की भाषा है और सरकार ही जनसंचार माध्यम है। एक शोधार्थी के अनुसार आंकड़े जनसंचार माध्यम में आकर दो हिस्सो में बंट जाते है। आंकड़ों से जो सूचनाएं निकलती है, उसे प्रस्तुत करने के बजाए,  जिस तरह की सूचनाएं जनसंचार माध्यम देना चाहते है, उसके हिसाब से आंकड़ों को ढालते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि एक आंकड़े का जैसे चाहे इस्तेमाल किया जा सकता है और आंकड़ों से तरह-तरह की सूचनाएं तैयार की जा सकती है। सरकार अपनी सुविधानुसार आंकड़ों का अविष्कार करके जनसंचार माध्यम के जरिए विकास की उपलब्धियों को बता सकती है और उन्हीं आंकड़ों से एक पत्रकार कई तरह की खबरें बना सकता है।

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि आंकड़ों का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में किया जाता है। यह चुनौतीपूर्ण स्थिति है कि कैसे जनसंचार माध्यमों के जरिए सूचनाओं को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है और उसे रोकने के लिए कोई विधि हमारे पास नहीं है।

                                                                                                                संजय कुमार बलौदिया










रविवार, 1 सितंबर 2013

कायम हैं कूवर की चुनौतियां


राष्ट्रीय सहारा-हस्तक्षेप-31-08-13

कोलंबो के डॉ अब्राहम कूवर ने आधी शताब्दी तक हर प्रकार के मानसिक, अर्ध मानसिक एवं आत्मिक चमत्कारों की बहुत ही गहराई तक खोज की और अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि ऐसी बातों में लेश-मात्र भी सत्य नहीं होता। इस संसार के मनोचिकित्सकों में वह अकेला ऐसे थे, जिनको इस क्षेत्र में खोज करने के परिणामस्वरूप पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त हुई
डॉ. अब्राहम कूवर प्रख्यात मनोचिकित्सक

देश के विभिन्न हिस्सों में अंधविश्वास के खिलाफ आंदोलन चल रहे हैं। कहीं तर्कशील, ह्मूनिस्ट, रैशनिलिस्ट तो कहीं विज्ञान के प्रचार-प्रसार के नाम पर चल रहे हैं। इन सबका उद्देश्य समाज में विभिन्न स्तरों पर व्याप्त अंधविश्वासों की स्थितियों को खत्म करना है। ऐसे ही एक प्रयास भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में शुरू हुआ था और उस आंदोलन के अनुभवों से भारत के आंदोलनों को काफी कुछ सीखने को मिला है। डॉक्टर अब्राहम कोवूर दुनिया के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक एवं सचेत वैज्ञानिक थे। वह श्रीलंका के तर्कशील विद्वानों की एक संस्था का प्रधान थे। उन्होंने लगभग आधी शताब्दी तक हर प्रकार के मानसिक, अर्ध मानसिक एवं आत्मिक चमत्कारों की बहुत ही गहराई तक खोज की और अंत में इस परिणाम पर पहुंचे कि ऐसी बातों में लेश-मात्र भी सत्य नहीं होता। इस संसार के मनोचिकित्सकों में वह अकेला ऐसे थे, जिनको इस क्षेत्र में खोज करने के परिणामस्वरूप पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त हुई। अमेरिका की मिनसोटा संस्था ने उनके मनोवैज्ञानिक एवं ऐसे ही अन्य चमत्कारों की खोज के फलस्वरूप उसको पीएच.डी. की डिग्री प्रदान की। कोवूर ने एक पर्चा निकाला, जिसका शीर्षक था- चुनौतियां । उसमें उन्होंने लिखा : ‘मैं अब्राहम टी कोवूर, तिरूविल्ला, पमानकाडा लेन, कोलंबो-6 का निवासी, यह घोषणा करता हूं कि मैं श्रीलंका के एक लाख रुपये का ईनाम संसार के किसी भी ऐसे व्यक्ति को देने के लिए तैयार हूं, जो ऐसी स्थिति में, जहां धोखा न हो, कोई चमत्कार या अलौकिक शक्ति का प्रदशर्न कर सकता हो। यह पेशकश मेरी मृत्यु तक या इससे पहले ईनाम जीतने वाले के मिलने तक खुली रहेगी। देवपुरु ष, संत, योगी, सिद्ध, गुरु , स्वामी एवं अन्य दूसरे जिन्होंने आत्मिक क्रिया-कलापों से या परमात्मा की शक्ति से शक्ति प्राप्त की है, इस ईनाम को निम्नलिखित चमत्कारों में से किसी एक का प्रदशर्न करके जीत सकते हैं : जो सीलबंद करेंसी का क्रमांक पढ़ सकता हो। जो किसी करेंसी नोट की ठीक नकल पैदा कर सकता हो। जो जलती हुई आग पर, अपने देवता की सहायता से, आधे मिनट तक नंगे पैरों पर खड़ा हो सकता हो। ऐसी वस्तु, जिसकी मैं मांग करूं हवा में से पेश कर सकता हो। मनोवैज्ञानिक शक्ति से किसी वस्तु को हिला या मोड़ सकता हो। टेलीपैथी के माध्यम से, किसी दूसरे व्यक्ति के विचार पढ़ सकता हो। प्रार्थना आत्मिक शक्ति, गंगाजल या पवित्र राख से अपने शरीर के अंग को एक इंच बढ़ा सकता हो। जो योग शक्ति से हवा में उड़ सकता हो। योग शक्ति से पांच मिनट के लिए अपनी नब्ज रोक सकता हो। पानी के ऊपर पैदल चल सकता हो। अपना शरीर एक स्थान पर छोड़कर दूसरे स्थान पर प्रकट हो सकता हो। योग शक्ति से तीस मिनट तक अपनी श्वास क्रिया रोक सकता हो। रचनात्मक बुद्धि का विकास करे या भक्ति या अज्ञात शक्ति से आत्मज्ञान प्राप्त करें। पुनर्जन्म के कारण कोई अद्भुत भाषा बोल सकता हो। ऐसा आत्मा या प्रेत को पेश कर सके, जिसकी फोटो ली जा सकती हो। फोटो लेने के उपरांत फोटो में से गायब हो सकता हो।
ताला लगे कमरे में से आलौकिक शक्ति से बाहर आ सकता हो। किसी वस्तु का भार बढ़ा सकता हो। छुपी हुई वस्तु को खोज सके। पानी को शराब या पेट्रोल में परिवर्तित कर सकता हो। ऐसे ज्योतिषी या पांडे, जो यह कहकर लोगों को गुमराह करते हैं कि ज्योतिष और हस्तरेखा एक विज्ञान है, मेरे ईनाम को जीत सकते हैं। यदि वे दस हस्त चित्रों या ज्योतिष पत्रिकाओं को देखकर आदमी और औरत की अलग-अलग संख्या, मृत और जीवित लोगों की संख्या का जन्म का ठीक समय व स्थान, आक्षांश-रेखांश के साथ बता दें। इसमें पांच प्रतिशत गलती माफ होगी। नोट : यह चुनौती निम्नलिखित शर्तों के साथ क्रियान्वित होगी। जो व्यक्ति मेरी इस चुनौती को स्वीकार करता है, यद्यपि वह ईनाम जीतना चाहता हो या नहीं, उसे मेरे पास या मेरे नामजद किए हुए व्यक्ति के पास, एक हजार रु पये जमानत के रूप में जमा कराने होंगे। यह पैसे ऐसे लोगों को दूर भगाने के लिए हैं, जो सस्ती शोहरत की खोज में हैं। नहीं तो ऐसे लोग मेरा धन, शक्ति और कीमती समय को बेकार में ही नष्ट कर देंगे। यह रकम जीतने की हालत में वापस कर दी जाएगी। किसी व्यक्ति की चुनौती उस समय स्वीकार की जाएगी, जब वह जमानत के पैसे जमा करा देगा। जो ऐसा नहीं करता उसके साथ किसी प्रकार का पत्र व्यवहार नहीं किया जाएगा। जमानत जमा कराने के बाद, किसी व्यक्ति के चमत्कार का सर्वप्रथम मेरे द्वारा नामजद किए हुए व्यक्ति द्वारा लोगों की उपस्तथिति में किसी निश्चित दिनांक को परीक्षण किया जाएगा। यदि वह व्यक्ति परीक्षण का सामना नहीं कर सकता या आरंभिक परीक्षण में ही असफल हो जाता है तो उसकी जमानत जब्त कर ली जाएगी। यदि वह इस आरंभिक जांच-पड़ताल में सफल हो जाता है, तो अंतिम जांच मेरे द्वारा लोगों की उपस्थिति में की जाएगी। -यदि कोई व्यक्ति इस अंतिम जांच पड़ताल में जीत जाता है, तो उसको एक लाख रु पये का ईनाम जमानत की राशि के साथ दे दिया जाएगा। सभी परीक्षण, धोखा न होने वाली स्थिति में और मेरी या मेरे द्वारा नामजद किए हुए व्यक्ति की पूर्ण तसल्ली तक किए जाएंगे। यद्यपि डॉक्टर कोवूर यह चुनौती 1963 ईस्वी में आज से 20 वर्ष पूर्व दी थी और यह दुनिया के सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई थी लेकिन आज तक कोई भी व्यक्ति उनसे एक रु पया भी जीत नहीं सका। उनकी चुनौती की कॉपियां चमत्कारों को नंगा करने की उसकी दो मुहिमों से पहले भारत के बहुत से ज्योतिषी, हस्तरेखा निपुण देवपुरु ष एवं देवस्त्रियों को 1975 में भेजी गई। सिर्फ बेंगलुरु में एक डॉक्टर ने उनकी चुनौती को स्वीकार किया और जमानत के एक हजार रुपये जमा करवा दिए। परिणाम यह निकला कि डॉ कोवूर एक हजार रूपये के साथ अपनी मुहिम से वापस श्रीलंका पहुंच गए। डॉ कोवूर उन व्यक्तियों के लिए खौफ थे, जो भोले-भाले लोगों को चमत्कार या अलौकिक शक्तियों का डर पैदा करके लूटते थे। पृथ्वी पर से भ्रमों को खत्म करने की उसकी कोशिश में, डॉक्टर कोवूर बीसवीं शताब्दी में सबसे महान व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं।

प्रस्तुति : संजय कुमार बलौदिया