गुरुवार, 20 नवंबर 2014

सुरक्षा का सवाल और मीडिया का नजरिया


एक राष्ट्रीय अखबार (जनसत्ता) ने अपने दिल्ली संस्करण में 20 जुलाई को पेज नंबर चार पर लाजपतनगर बाजारः खतरे में खरीदारी हेडलाइन से खबर छापी। पूरी खबर में लाजपतनगर में अनधिकृत दुकानों से होनी वाली अव्यवस्था के बारे में बताया गया है। साथ ही खबर में लाजपतनगर 1996 में हुए विस्फोट की फाइल फोटो भी लगाई गई है और उस घटना के बारे में विस्तार से बताया है।

इसी किस्म की एक दूसरी खबर एक अन्य समाचार पत्र (नवोदय टाइम्स) में 24 जुलाई को तीसरी आंख में खराबीः कैसे रखी जाए आतंकियों पर नजर शीर्षक से छपी। इसमें लोट्स टेंपल, आनंद विहार, दिल्ली का पॉश मार्केट साकेत, पी.वी.आर मार्केट, पहाड़गंज बाजार, कुतुबमीनार और लाजपतनगर मार्केट इन सभी जगहों को सब-हेड बनाकर उसमें सी.सी.टी.वी कैमरों की खराबी के बारे में बताया गया है, जबकि खबर में सिर्फ लोट्स टेंपल और कुतुबमीनार के बारे कहा गया है कि एनआईए कई बार पत्र लिखकर इन सार्वजनिक स्थलों को सुरक्षा घेरे में रखने की बात कह चुकी है। पहाड़गंज बाजार के बारे में लिखा गया है कि 2005 में आतंकियों ने यहां हमला किया था।

यह दोनों खबरें एक-दूसरे से अलग दिख सकती है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। दोनों खबरों के जरिए यह बताने की कोशिश की गई है कि अव्यवस्था और सी.सी.टी.वी कैमरे खराब होने के कारण इन जगहों पर घूमना तथा खरीदारी करना खतरे से खाली नहीं है। सवाल यह है कि जो अव्यवस्था बाजार में साल भर रहती है, उस अव्यवस्था को खास समय में ही पत्रकार क्यों सुरक्षा से जोड़कर देखता है तथा खबर लिखता है, जबकि बाकी समय में यह अव्यवस्था सिर्फ अव्यवस्था ही रहती है। जाहिर है कि इस तरह की खबरें देकर स्वतंत्रता दिवस के लिए सुरक्षात्मक और राष्ट्रवादी माहौल तैयार करने की कोशिश की जाती है। इससे यह भी साफ हो जाता है कि ऐसे पत्रकार पाठकों के लिए उस तरह का माहौल तैयार कर रहे हैं, जैसे कोई आतंकी घटना होने वाली हो।  

एक अखबार अपनी खबर में खतरा शब्द का प्रयोग करता है, तो दूसरा आतंकी शब्द का। दोनों ही खबरें हेडिंग के मुताबिक नहीं लगती है। खतरा और आतंकी शब्द का इस्तेमाल बिना किसी पुख्ता स्रोत के धड़ल्ले से किया जा रहा है। पत्रकारिता में शब्दों का अपना महत्व होता है। लेकिन लगता है कि पत्रकारिता में शब्दों के प्रति संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है। अब तक आतंकवाद, आतंकी जैसे शब्दों का प्रयोग उसके अर्थों में किया जाता था लेकिन पिछले कुछ समय से आतंकवाद, आतंकी शब्द के अर्थ को मीडिया ने बदल कर रख दिया है। मीडिया अपने अनुकूल आतंकवाद, आतंकी शब्द का प्रयोग करता है, ठीक उसी प्रकार एक पत्रकार अपनी खबरों में आतंकी शब्द का प्रयोग करता है। इसलिए तो सी.सी.टी.वी कैमरे जहां खराब हों, वहां आतंकी शब्द का प्रयोग करने की सहूलियत पत्रकारों को मिल जाती है। इसी सहूलियत के तहत आजकल कुछ पत्रकार किसी विशेष अवसर या त्योहार पर पूर्व की घटनाओं को पृष्ठभूमि के तौर पर उपयोग कर खबरें गढ़ने लगे हैं। किसी घटना से जुड़ी पिछली घटनाओं का ब्यौरा पेश करने के लिए पृष्ठभूमि का इस्तेमाल किया जाता है। मगर अब पत्रकार पृष्ठभूमि को आधार बनाकर खबर देने लगे हैं।      

एक बात यह भी है कि सुरक्षा को सिर्फ आतंकियों से ही कैसे जोड़ा जा सकता है जिसका कोई आधार न हो। इन बाजारों या सार्वजनिक स्थानों पर होने वाली हिंसा, लूट-पाट, चोरी आदि की घटनाओं का संबंध भी सुरक्षा से ही है, तो फिर पत्रकार क्यों सुरक्षा को आतंकी घटनाओं तक सीमित करने की कोशिश कर रहा है। दूसरे, सुरक्षा को सिर्फ सी.सी.टी.वी तक क्यों समेटने की कोशिश की जा रही है। घटना घटने के स्थान पर सी.सी.टी.वी कैमरे का न होना या खराब होने को सुरक्षा में खामी के तौर पर देखा जाता है। समय-समय पर यह बात कही जाती है कि भीड़भाड़ वाले इलाकों में सीसीटीवी कैमरे न होने के कारण वहां कोई हमला या विस्फोट हो गया। सीसीटीवी कैमरे से पहले भी सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए एक्सरे मशीन और मेटल डिटेक्टर जैसे उपकरणों का प्रयोग किया गया है। तब फिर हम सीसीटीवी कैमरे को सुरक्षा व्यवस्था में सहायक उपकरण मनाने के बजाए उसे ही सुरक्षा का पर्याय बनाने में क्यों लगे हैं। सीसीटीवी कैमरों को बढ़ावा देने के लिए कहा जाता है कि इससे अपराध की घटनाओं में कमी आएगी। सवाल यह है कि सीसीटीवी कैमरा ही कैसे अपराध की घटनाओं को रोकने में सक्षम हो सकता है। इसके जरिए सिर्फ हमें अपराध की घटना के संबंध सुराग या सबूत ही मिल सकते है। शायद यह इसी का नतीजा है कि इस बार के बजट में महिला सुरक्षा के नाम पर सीसीटीवी उद्योग को प्रोत्साहन दिया गया है। हमारे समाज में सुरक्षा के नाम पर सी.सी.टी.वी कैमरे का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस बात को ऐसोचैम की 2012 की रिपोर्ट से भी समझा जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सीसीटीवी के बाजार की समग्र वार्षिक विकास दर 30 प्रतिशत और एक अनुमान के मुताबिक यह 2015 तक 2200 करोड़ रुपये का हो जाएगा। इस समय भारत में कुल इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा बाजार 2400 करोड़ का है जिसमें सीसीटीवी कैमरे का प्रतिनिधित्व 40 प्रतिशत है और सीसीटीवी कैमरे का बाजार तेजी बढ़ रहा है। भारत का सीसीटीवी बाजार वैश्विक औसत के मुकाबले भी तेजी विकास कर रहा है और एशियन देशों में चीन भी इसी तेजी से विकास कर रहा है। 

जिस तेजी से इसके कारोबार में बढ़ोतरी हो रही है उससे कहा जा सकता है कि जानबूझकर मीडिया के जरिये समाज में सुरक्षा के नाम पर डर का माहौल पैदा किया जा रहा है ताकि ऐसे उपकरणों की बिक्री बढ़े। इस मुनाफावाद में जनता के टैक्स का बंदरबांट करने का सरकारों को मौका मिल जाता है और ऐसे उपकरणों की सुरक्षा के नाम पर भारी भरकम खरीद-फरोख्त की जाती है। इस मुनाफावाद को बढ़ावा देने में पत्रकारों की बड़ी भूमिका होती है और वे इस तरह की मनगढ़ंत खबरें गढ़ने में लगे रहते हैं।