शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

गरीबी का कैसा पैमाना

गरीबी का कैसा पैमाना
हमारे देश में स्वतंत्रता के बाद से ही गरीबी की समस्या बनी हुई है। आज छह दशक के बाद भी हालात में कुछ खास बदलाव नहीं आया है। छह दशक में 11 पंचवर्षीय योजनाएं पूरी हो चुकी है। हमने 90 के दशक में नई आर्थिक नीति  को अपनाया । आज भारत को अमेरिका जैसे देश उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में देखते है। लेकिन देश में गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा जैसी समस्याएं बनी हुई है। देश में विकास हुआ है। वहीं इस विकास ने अमीरी व गरीबी के अंतर को बढ़ावा ही दिया है। हमारे देश में आर्थिक विकास को विकास का पैमाना माना जा रहा है जो कि गलत है। देश में 6 दशक में भी हम अपने देश में गरीबों की सही संख्या नहीं पता लगा सके तो इससे हमारी नीतियों की खामियों का पता चलता है।
 देश में गरीबों की संख्या पता लगाने के लिए न जाने  कितनी कमेटियां बनाई गयी। इन कमेटियों के आंकड़ों में भी  काफी अंतर है ।जब तक गरीबों की सही संख्या का पता नहीं लगेगा हम गरीबों तक सुविधाएं कैसे पहुचा पायेगें। लेकिन योजना आयोग ने अनाज में सब्सिडी कम करने के लिए सुरेश तेदुंलकर समिति की सिफीरिशों को आधार बनाया है जिसमें शहरों में 32 रूपये व गांवों में 26 रूपये कमाने वालों को गरीबों की संख्या से बाहर रखा है।  इसी प्रकार एनसी कमेटी के अनुसार 50 फीसदी , तेदुंलकर समिति के अनुसार 37 फीसदी है इसके साथ ही अर्जुन सेन गुप्ता कमेटी के अनुसार 77 फीसदी लोग गरीबी  रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे है। योजना आयोग के अनुसार गरीबों की संख्या 27 फीसदी है। अब यदि योजना आयोग से पूछा जाये कि वह तेदुंलकर समिति की रिपोर्ट कोअनाज की सब्सिडी को कम करने को आधार बना रही है तो उसे तेदुंलकर समिति की उस रिपोर्ट को भी मानना चाहिए जिसमें वह गरीबों की संख्या 37 फीसदी बताई गई है। छठी पंचवर्षीय योजना के दौरान गरीबी निधार्रण का पैमाना खाने की खुराक को बनाया गया था। लेकिन आज गरीबी के निधार्रण में शिक्षा, स्वास्थ्य ,खाना सभी को आधार बनाया जा रहा है। सरकार एक तरफ जहां 15 रूपये में जनाहार यानि एक समय का खाना देती है। वहीं 26 गांवों में और 32 रूपये शहरों में  शिक्षा, स्वास्थ्य ,खाना कैसे मिल सकता है।यह गरीबों से मजाक नहीं तो और क्या है। वहीं देश में मंहगाई के दौर में पिछले एक वर्ष में दूध में 26 फीसदी, प्याज में 100 फीसदी, तेल में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है। ऐसे में हम कैसे विकास की बात कर रहे है। जहां एक व्यक्ति 15 रूपये पानी की बोतल पर खर्च करता है वहीं एक व्यक्ति दूषित पानी पीने को मजबूर है। सरकार गरीबों की संख्या को घटाकर सब्सिडी को घटाकर आम आदमी पर और मंहगाई की मार करने जा रही है।

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