बुधवार, 19 सितंबर 2012

न्यूड फोटोशूट: अश्लीलता या आजादी


 
पिछले कुछ समय से न्यूड होने का दौर चल पड़ा है। दिसंबर 2011 में वीना मलिक ने एफएचएम(FHM) पत्रिका के लिए न्यूड फोटोशूट करवाया। फिर कोलकाता नाइट राइडर्स के खिताब जीतने पर पूनम पांडे न्यूड हुई, तो वहीं शर्लिन चोपड़ा इंटरनेशनल एडल्ट मैगजीन प्लेब्वॉय के लिए न्यूड पोज देने वाली पहली भारतीय महिला बनी। इसके बाद शमिता शर्मा और अब टीवी एक्ट्रेस भी न्यूड होने से परहेज नहीं कर रही है। इन न्यूड फोटोशूट के बहाने अश्लीलता परोसी जा रही है। इसके लिए मीडिया भी अहम भूमिका निभाने से परहेज नहीं कर रहा है।

   शर्लिन चोपड़ा जिन्हें न्यूड होने पर गर्व  है। उनका मानना है कि मैगजीन के  लिए कपड़े उतारना खुद को रूढ़िवादी परंपरा से आजाद करने से कम नहीं हैं। इसे अब क्या यह मान लिया जाए कि महिलाओं को आजादी मिल गई है या फिर आजादी के नाम पर अश्लीलता परोसने का बहाना मात्र है। आज भी महिलाओं को जहां उनके अधिकार नहीं मिल सके है, तो वहीं कुछ महिलाएं न्यूड फोटोशूट करवाकर दैहिक स्वतंत्रता को मात्र देह में बदलना चाहती है। पहले विज्ञापन ने महिला को मात्र देह में बदलने की कोशिश की और अब न्यूड  फोटोशूटों के जरिए भी वहीं हो रहा।


 फिल्मों की अश्लीलता रोकने के लिए सेंसर बोर्ड ने निर्णय लिया है कि वह जिस फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट देगा, उनका अब किसी तरह टीवी पर प्रदर्शन लगभग असंभव हो जाएगा। इस अश्लीलता पर तो सेंसर बोर्ड रोक लगने की कोशिश कर रहा है, लेकिन न्यूड फोटोशूट के जरिए जो अश्लीलता हमारा मीडिया खबरों के माध्यम से परोस रहा है उसका क्या। मीडिया न्यूड फोटोशूट की खबरों को बड़ी प्रमुखता से पेश कर रहा है। इन फोटोशूट से जहां हमारी संस्कृति प्रभावित हो रही है, वहीं महिलाओं की आजादी का दायरा सीमित होने का खतरा भी हैं।


 अब हमें समझना होगा कि ये फोटोशूट सिर्फ कुछ मॉडलों के लिए मात्र नाम और पैसा कमाने का जरिए हैं, न कि महिलाओं की आजादी।  ऐसे में मीडिया को भी इन फोटोशूटों को ज्यादा तवज्जों नहीं देनी चाहिए, जिससे सस्ती लोकप्रियता की भूखी मॉडलों को भी बढ़ावा न मिलें।  



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