रविवार, 7 दिसंबर 2014

आजादी बनाम सुरक्षा संदर्भ सीसीटीवी कैमरा

हरियाणा रोडवेज की बस में छेड़छाड़ करने वाले मनचलों को दो बहनों ने सबक सिखाया। जबकि पूरी बस में सभी लोग तमाशबीन बनकर तमाशा देखते रहे, सिर्फ एक गर्भवती महिला ने ही उनका विरोध किया। इस तरह की घटनाएं दिल्ली, हरियाणा या फिर कोई और राज्य सभी जगह हो रही है। दिल्ली में महिलाओं और आमलोग की सुरक्षा का तर्क देकर दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) ने अपनी 200 बसों में सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं। कहा जा रहा है कि इन कैमरों को बसों में सफर करने वाले लोगों, खासकर के महिलाओं की सुरक्षा को पुख्ता करने के लिए लगाया गया हैं। हर बस में तीन-तीन कैमरे लगाए गए हैं। 200 बसों में एसी लो फ्लोर और नॉन एसी लो फ्लोर बसें शामिल हैं। इससे ठीक पहले दिल्ली पुलिस ने भी राजधानी के चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला किया। यहां सवाल उठता है कि क्या महज सीसीटीवी तकनीक के जरिए ही आमलोगों और महिलाओं की सुरक्षा हो सकती है। क्या अब सार्वजनिक परिवहन के तहत चलने वाली बसों में भी सीसीटीवी कैमरों की जरूरत है जिसमें सैकड़ों लोग सफर करते हैं। जब सैकड़ों लोगों के बीच कोई लूट-पाट या छेड़छाड़ की घटना होती है, लेकिन उस घटना को रोकने के लिए कोई भी आगे नहीं आता। इसकी एक वजह यह है कि हम लोगों एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां हम अन्य लोगों के प्रति संवेदनहीन होते जा रहे हैं। दूसरी वजह यह है कि आम जनता पुलिस से दूर ही रहना चाहती है, क्योंकि अगर कोई व्यक्ति किसी की मदद भी करना चाहता है तो हमारा पुलिस और प्रशासनिक तंत्र मदद करने वाले को ही अपने शिकंजे में लेने की कोशिश करता है। साथ ही उसे लंबे समय तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी लगाने पड़ते हैं। तब क्या महज सीसीटीवी कैमरों के लगाए जाने के बाद आम लोग या महिलाएं बसों में सुरक्षित होगी, यह कहना मुश्किल है।

सीसीटीवी कैमरों से पहले डीटीसी बसों में ही सुरक्षा के नाम पर और यात्रियों की सुविधा का तर्क देकर जीपीएस सिस्टम को लगाया गया था ताकि बसों की वास्तविक स्थिति और रूट की जानकारी मिल सके है। लेकिन जीपीएस सिस्टम के बावजूद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। दिल्ली सरकार का एक और फैसला जिसके तहत रात में चलने वाली डीटीसी बसों में होमगार्ड जवानों को तैनात करने की बात कही। लेकिन इन सभी फैसलों के बाद भी अपराध की घटनाओं में कोई कमी नहीं हुई।
जब सड़कों और मुख्य मार्गों पर सीसीटीवी कैमरों को लगाया जा रहा है, तब फिर बसों में इन कैमरों की क्या जरूरत है। गौरतलब है कि कैसे मेट्रो में लगे सीसीटीवी कैमरों का दुरुपयोग हुआ और उनसे अश्लील वीडियो क्लिप्स बनाए गए। मेट्रो स्टेशनों पर सीसीटीवी होने के बावजूद चोरी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इससे भी यह बात साफ होती है कि महज तकनीक के जरिए ही चोरियां नहीं रोकी जा सकती हैं।

आम लोगों की सुरक्षा का तर्क देकर सरकार आसानी से सड़कों, बाजारों के बाद अब बसों में भी सीसीटीवी कैमरे लगा रही है। लेकिन यहां एक सवाल उठता है कि इस तरह से बढ़ती सीसीटीवी कैमरों की निगरानी क्या आम लोगों की आजादी के खिलाफ नहीं है? इस तकनीक के जरिए क्या अपराधों को कम किया जा सकता है? ब्रिटेन जैसे देश में जहां पर सबसे अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए है जब वहां पर अपराध दर में कमी नहीं आई है। तो फिर हम क्यों सीसीटीवी के जरिए अपराध दर को कम कर लेना चाहते है, जो कि संभव नहीं है। सरकार और प्रशासन अपराध के कारणों की जड़ों में जाने के बजाए सीसीटीवी कैमरों को ही समाधान मानने लगा है। इससे सरकार और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से भी बच जाते हैं और सुरक्षा व्यवस्था में होने वाली खामियों को भी छिपा लेते हैं।
   
सीसीटीवी कैमरों के जरिए सिर्फ हमें अपराध की घटना के संबंध सुराग या सबूत ही मिल सकते है। इस तकनीक की मदद से मिले सुराग या सबूत के बाद भी पुलिस कई घटनाओं में अपराधी को पकड़ने पाने नाकाम रही है। इस बात से यह भी स्पष्ट होता है कि महज इस तकनीक के भरोसे सुरक्षा का दावा नहीं किया जा सकता। यह तकनीक हमारी सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर कर सकती है, लेकिन सीसीटीवी कैमरों के भरोसे ही सुरक्षा की बात करना बेमानी है। इस तकनीक का इस्तेमाल भी उतना ही किया जाना चाहिए जिससे आम आदमी की आजादी खतरे में न पड़े।

हमारे समाज में सुरक्षा के नाम पर सी.सी.टी.वी कैमरे का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस बात को ऐसोचैम की 2012 की रिपोर्ट से भी समझा जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सीसीटीवी के बाजार की समग्र वार्षिक विकास दर 30 प्रतिशत है और एक अनुमान के मुताबिक यह 2015 तक 2200 करोड़ रुपये का हो जाएगा। इस समय भारत में कुल इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा बाजार 2400 करोड़ का है जिसमें सीसीटीवी कैमरे का प्रतिनिधित्व 40 प्रतिशत है और सीसीटीवी कैमरे का बाजार तेजी बढ़ कर रहा है। भारत का सीसीटीवी बाजार वैश्विक औसत के मुकाबले भी तेजी से बढ़ रहा है और एशियन देशों में चीन भी इसी तेजी से विकास कर रहा है। 


अगर इसी तरह से सुरक्षा के नाम पर सीसीटीवी कैमरों को बढ़ावा दिया गया तो इससे अपराध दर भले ही न घटे लेकिन इसे आम आदमी की आजादी जरूर खतरे में पड़ जाएगी। इस तकनीक को ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने बजाए बेहतर होगा कि हम पुलिस सुधार पर ज्यादा बल दें। पुलिस सुधार को लेकर कई कमेटियां का गठन हुआ, लेकिन उन कमेटियां की सिफारिशों को आज तक अमल में नहीं लाया गया है। यहां तक की सुप्रीम कोर्ट के व्यापक दिशा-निर्देश के बाद भी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। आम लोगों के बीच पुलिस को अपनी छवि को सुधारना होगा, ताकि पुलिस और जनता के बीच संबंध कायम हो सके। तभी इस तरह की घटनाओं को रोक जा सकता हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें