मंगलवार, 24 जनवरी 2012

क्या मिलेगी खाद्य सुरक्षा की गांरटी

अभी कुछ समय पहले खाद्य सुरक्षा विधेयक 2011 को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की मंजूरी मिली । इस खाद्य सुरक्षा विधेयक के आने से सभी को भोजन की व्यवस्था करवाने की बात की जा रही है। वही संघ राज्य का कर्तव्य है कि अपने नागरिकों को भूखा न सोने दें। जबकि अभी तक गरीबी निर्धारण के पैमाने तय नहीं किये जा सके है। तो जब भारत में गरीबों की संख्या की सही जानकारी ही नहीं है तो सरकार किस आधार पर कह सकती है कि सभी को खाद्य सुरक्षा दी जायेगी।
इस खाद्य सुरक्षा विधेयक में नागरिकों को दो श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी प्राथमिक और दूसरी सामान्य श्रेणी। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 75 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 50 फीसदी आबादी को रखा गया है। जिसमें ग्रामीण क्षेत्र के 46 फीसदी को और शहरी क्षेत्र के 28 फीसदी को प्राथमिकता दी गई है। जबकि बाकी 29 फीसदी ग्रामीण और 22 फीसदी शहरी आबादी को सामान्य श्रेणी में रखा गया है।
वही इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक प्राथमिक श्रेणी को चावल 3 रूपये किलो, गेहूं 2 रूपये किलो और मोटा अनाज 1 रुपये किलो की दर पर उपलब्ध करवाया जायेगा। जबकि सामान्य श्रेणी को समर्थन मूल्य की आधी कीमत पर अनाज मुहैया करवाया जायेगा।
यह भी कहा जा रहा है कि इस विधेयक से देश के 63.5 फीसदी लोगों को लाभ मिलेगा। लेकिन किसी विधेयक से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती। इस विधेयक से पहले सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली और अनाज भंडारण की व्यवस्था को भी ठीक किया जाना चाहिए था जो कि अभी नहीं किया जा सका है। इसके साथ ही किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि अनाज की बढ़ती जरूरत को पूरा किया जा सके। राज्य सरकारें भी इस विधेयक के सहयोग में नहीं है। राज्य सरकारों पर पड़ने वाले बोझ का भी ध्यान नही रखा गया है।
एक ओर, हकीकत यह भी है कि बीपीएल कार्डधारकों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है जबकि फर्जी कार्डों के माध्यम से कोई और ही इन योजनाओं का लाभ उठा रहा है। पहले की बनी व्यवस्थाओं में सुधार किए बिना इस विधेयक के लाभ के अनुमान भी अन्य योजनाओं और कानूनों की तरह होंगे। नये- नये कानून बनाने के बजाए पुरानी व्यवस्था की खामियों को दूर करके नये कानूनों का पूरा लाभ उठाया जा सकता है।

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