शुक्रवार, 15 जून 2012

दसवीं बोर्ड का रिजल्ट रिकॉर्ड फिर भी हिंदी हुई फेल

अभी हाल ही में यूपी बोर्ड दसवीं का रिजल्ट आया, जिसमें 83.75 फीसद छात्र पास हुए। जो एक रिकॉर्ड बताया जा रहा है। वहीं इस बार हिंदी में सवा तीन लाख छात्र फेल हुए है। इस बार दसवीं की परीक्षा में कुल 35 लाख 59 हजार छात्रों ने भाग लिया था। हिंदी में इतने छात्रों का फेल होना यह साबित करता है कि हम चाहे हिंदी का कितना भी गुणगान कर लें, लेकिन सच यह है कि आज हम बच्चों को अंग्रेजी सीखने के चक्कर में हिंदी की उपेक्षा करते जा रहे है। आज हम चाहते है कि हमारा बच्चा पहली कक्षा से अंग्रेजी बोले। इस होड़ से हिंदी भाषा से कहीं न कहीं बच्चे दूर होते जा रहे है। वहीं आज स्कूलों में भी हिंदी पर इतना जोर नहीं दिया जा रहा है। दूसरी ओर हम बच्चों को अंग्रेजी सीखने के लिए ट्यूशन से लेकर कोंचिग तक करवाते है, लेकिन हिंदी पर इतना जोर क्यों नहीं दिया जाता है। आज अंग्रेजी के बिना कैरियर नहीं है। इस कारण अंग्रेजी की जरूरत को नकार नहीं जा सकता, लेकिन किसी भाषा की उपेक्षा कर दूसरी भाषा को सीखना भी कितना सही है। अंग्रेजी सीखने से हम आधुनिक हो जाते है, लेकिन अंग्रेजी नहीं आती तब हम पिछड़े माने जाते है। आज अंग्रेजी को हमने ऐसी भाषा बन दिया है कि अंग्रेजी के सिवा कोई भाषा ही नहीं रह गई है। वहीं समय-समय पर हिंदी को लेकर बहस चलती रहती है। तो कभी आईआरएस की सर्वे में टॉप टेन में हिंदी के अखबारों के नाम आने से हिंदी की स्थिति को तय किया जाता है। भले हिंदी के अखबार पढ़ने वालों की संख्या बढ़ी हो, लेकिन हम किस हिंदी अखबारों की बात कर रहे है, जो आज हिंग्लिश भाषा को बढ़ावा दे रहे है। इन अखबारों के सर्वे से हिंदी की स्थिति को तय नहीं किया जा सकता, इन सर्वे से केवल मार्केट को तय किया जा सकता है। हम समझ सकते है कि दसवीं में हिंदी में सवा तीन लाख बच्चे फेल हो जाते है। यह चिंतनीय विषय है , क्योंकि इन बच्चों से ही भविष्य में हिंदी की स्थिति तय होगी। जब इतने बच्चे फेल होंगे, तो भविष्य में हिंदी को लेकर चिंता होना वाजिब है।

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