अभी कुछ समय पहले ही
राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप की योजना के लिए 125 करोड़ रुपये के आवंटन को घटाकर
25 करोड़ कर दिया है। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को जिम्मेदार ठहराया गया
है। यह फेलोशिप अनुसूचित जाति के छात्र-छात्राओं को वित्तीय सहायता देकर उन्हें
सशक्त बनाने के लिए है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि यूजीसी ने न तो
लाभार्थियों की सूची पेश की और न ही पिछले वर्षों के 150 करोड़ रुपये के उपयोगिता
प्रमाणपत्र पेश किए। ऐसा सिर्फ इस फेलोशिप या छात्रवृत्ति के साथ नहीं है। बल्कि
उच्च शिक्षा के स्तर पर देखे तो पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना के तहत केंद्र
सरकार एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरटी के छात्र-छात्राओं को आर्थिक रूप से सशक्त
बनाकर उनकी उच्च शिक्षा में भागीदार को बढ़ाना चाहती है, लेकिन ऐसा पूर्ण रूप से
नहीं हो पा रहा है। यहां भी उसी जटिल प्रक्रिया के नाम पर छात्रों को वर्ष के
अंत में छात्रवृत्ति मिलती है या कभी-कभी मिलती ही नहीं है।
इसका एक उदाहरण
दिल्ली विश्वविद्यालय का अदिति कॉलेज है। कॉलेज की छात्राओं ने आरटीआई का उपयोग कर
छात्रवृत्ति संबंधी कुछ सूचनाएं जुटाई। जिसमें यह जानकारी मिली कि 2011-12 में 102
छात्राओं ने ही छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किए, जबकि छात्रवृत्ति योग्य छात्राओं की
संख्या 207 है। इससे यह पता चलता है कि 95 छात्राओं को छात्रवृत्ति संबंधी की
जानकारी ही नहीं मिली या किसी कारण से वह आवेदन नहीं कर सकी। आवेदन करने वाली 102
छात्राओं में से किसी को भी छात्रवृत्ति नहीं मिली है। तब तीन छात्राओं ने आवेदन
भरने के बाद भी छात्रवृत्ति न मिलने का कारण जानना चाहा, तब उन्हें बताया गया कि
उनके फार्मों में त्रुटियां थी। वहीं, जब छात्रसंघ की अध्यक्ष आरटीआई के माध्यम से
छात्रवृत्ति संबंधी जानकारी मांगती है, तो यह बताया जाता है कि फार्म जमा ही नहीं
हुए। इन सब बातों को देखकर लगता है कि इस कॉलेज में या तो घोर लापरवाही बरती जा
रही या मामला कुछ ओर ही है। इसमें कॉलेज प्रशासन की लापरवाही तो साफ नजर आ रही है।
वहीं, एक छात्रा के पिता द्वारा वाइस चासंलर से इस संबंध में दो बार शिकायतें करने
के बाद भी इस मामले पर कोई कार्रवाई न होना यह दर्शाता है कि विश्वविद्यालय भी इस
मामले की उपेक्षा कर रहा है।
दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय
और उसके एक अदिति कॉलेज के इस वृतातं को महज एक उदाहरण के रूप में देखना चाहिए।
आमतौर पर एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरटी छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए
छात्रवृत्ति मुहैया नहीं हो पाने की स्थितियां तैयार करना एक साजिश के तौर पर
दिखता है।वर्चस्ववाद एक विचार और वह समय और स्थितियों के अनुसार वंचितों को वंचित
बनाए रखने के रूप तैयार करता है। आज के दौर में छात्रवृति से वंचित रखना पहले
शिक्षा से दूर रखने के ही बराबर है।
गौरतलब है कि इस छात्रवृत्ति से सिर्फ इन छात्र-छात्राओं को आर्थिक मदद ही
नहीं मिलती, बल्कि इनको अपने आप को सशक्त बनाने में भी मदद मिलती है।जहां
छात्रवृत्ति मिल जाती है वहां यह
छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा हासिल कर लेते हैं। डा. भीम राव आम्बेडकर को मदद नहीं
मिलती तो वे भी आज बतौर संविधान निर्माता हमारे सामने नहीं होते। यदि किसी एक भी
छात्र को छात्रवृत्ति न मिले, तब उनकी मनोदशा का अंदाजा हम लगा सकते। आदिवासियों
की दशा दिशा पर लिखते हुए रमणिका गुप्ता अपनी पुस्तक आदिवासी अस्मिता का संकट में
भी बताती है कि सरकार वजीफा देती है आदिवासी छात्रों को, लेकिन आधा पैसा वितरण
करने वाला रख लेता है और जो मिलता है, वह इतनी देर से कि उसका उपयोग पढ़ाई की जगह,
दूसरी जगह हो जाता है।यानी दिल्ली और सुदूर आदिवासी इलाकों में एक ही तरह के विचार
किन किन रूपों में सक्रिय हैं, इसकी थाह ली जा सकती है।
एक कॉलेज जब वाजिफे
से वंचित करता है तो वह दिन दूर नहीं होता
है जब कॉलेज की छात्रवृत्ति में भी कटौती कर दी जाती है। राजीव गांधी छात्रवृति का
उदाहरण सामने हैं। अब इसमें छात्राओं का क्या दोष है। दरअसल ये वर्चस्वादी विचार
की सक्रियता है जो प्रशासन की लापरहवाही और
गलती के रूप में दिखती है और सजा छात्राओं को भुगतनी पड़ेगी। इस प्रकार की
छात्रवृत्तियां इन छात्रों को प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही दी जाती है। ताकि
आर्थिक रूप से कमजोर छात्र शिक्षा से वंचित न हो सके।
मजेदार बात है कि दिल्ली
विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा को अधिकाधिक छात्रों तक पहुंचाने के लिए फीस माफी योजना
बनाए जाने का प्रचार कर रहा है। इसके तहत अनूसचित जाति और जनजाति के साथ ही आर्थिक
रूप से कमजोर तबके के छात्रों की फीस भी माफ करेगा।लेकिन सवाल यह है कि जब पहले से
मौजूद योजनाओं से छात्रों को वंचित रखने के विचार सक्रिय हो और उसे संरक्षण भी
मिलता दिख रहा हो तो इस नई योजना से क्या उम्मीद
की जा सकती है। इस योजना को लाभकारी बनाने के लिए यह सुनिश्चित करना भी जरुरी है
कि उन छात्रों को पर्याप्त मदद मिले, जो इसके योग्य हो।
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