रविवार, 27 अक्तूबर 2013

वोटों का शिलान्यास

                                                           संजय कुमार बलौदिया
कुछ समय पहले ही डीयू और जेएनयू में छात्र संघ के चुनाव हुए उन चुनावों में डीयू में 40 फीसदी मतदान हुआ, जबकि जेएनयू में 55 फीसदी मतदान हुआ। इससे लगता है कि अब लोगों के साथ ही छात्र-छात्राएं भी चुनाव के दिन को घूमने-फिरने का दिन मानने लगे। तभी तो भई वोट डालने वालों का प्रतिशत गिरता जा रहा है। हम भले ही अपने कीमती वोट की कद्र न जाने, लेकिन नेता लोग हमारे वोट की कीमत खूब जानते है। तभी तो अब विधानसभा चुनावों से पहले जगह-जगह शिलान्यास और उद्घाटन हो रहे है। इसके साथ ही सड़कों को तुड़वाकर दोबारा बनवाने और नालों की सफाई करवाने जैसे काम जोर-शोर से चल रहे हैं। तो कहीं सस्ती प्याज बेची जा रही है। और तो और बस स्टैड़ों और सड़कों पर लगे सरकार के विज्ञापन भी विकास ही विकास बता रहे हैं। सरकार के विज्ञापनों का नारा भी है यहां विकास दिखता है 
इन दिनों अखबार या टीवी चैनलों पर जो कभी राजनीति, सिनेमा और अपराध की खबरों से पटे होते थे। वहीं अखबार और चैनल अब स्कूलों के उद्घाटन या सामुदायिक भवन के शिलायन्स या फिर किसी नई योजना के शिलान्यस की खबरें प्रकाशित या प्रसारित कर रहे हैं। वरना पहले तो विकास की खबरें ढूंढने पर भी नहीं मिलती थी। शायद यह चुनाव का ही असर है।
चुनावी आचार संहिता लागू होने के डर से नेताओं ने ताबड़तोड़ शिलायान्स किए। विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार हो या विपक्षी पार्टी सभी शिलान्यास और उद्घाटन या नई योजनाओं को शुरू करने में व्यस्त है। दिल्ली सरकार के मंत्री ई-सब रजिस्ट्रार के कार्यालय, नए स्कूलों का उद्घाटन कर रहे और नई योजनाओं को भी हरी झंड़ी दे रहे। और तो और चंद दिनों में ही खाद्य सुरक्षा कानून, भूमि अधिग्रहण कानून और पेंशन फंड जैसे विधेयक भी आसानी से पास हो गए, जो काफी समय से लटके थे। खैर ये तो होना ही था, चुनाव जो नजदीक है। सरकार के विज्ञापनों और विकास की खबरों से ऐसा लगता है कि जैसे विकास की बाढ़ आई हो।
ऐसा सिर्फ दिल्ली में ही नहीं हो रहा है, मध्यप्रदेश में तो एक मंत्री ने आठ घंटे में दो हजार पांच सौ इक्यावन परियोजनाओं का शिलायान्स कर एक तरह का रिकॉर्ड बना दिया। आखिर चुनाव के नजदीक आते ही हर तरफ विकास कार्य क्यों दिखाने की कोशिश की जाती है। भई हम लोग अपने कीमती वोट की कीमत जाने या न जाने पर हमारे नेता लोग तो हमारे वोटों की कीमत बखूबी जानते हैं। तभी तो चुनावों से पहले विकास की बाढ़ आ जाती है। चुनाव के बहाने ही सही कुछ विकास कार्य तो हो जाता है। लेकिन हम लोग है कि फिर भी कहते है कि वोट देने का क्या फायदा। वोट का ही तो फायदा है जो चुनाव से पहले हमारे नेता लोग विकास कार्य करवाने लगते हैं। यह विकास कार्य हम लोगों के वोट पाने के लिए ही तो हो रहा है। भई विकास और विकास के विज्ञापन नहीं होंगे, तो भला नेताओं को वोट कैसे मिलेंगे। 


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