मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

मंदी और मीडिया

                                                             संजय कुमार बलौदिया
मीडिया संस्थानों में आर्थिक संकट या मंदी के बहाने कर्मचारियों की छंटनी को एक स्वीकृति के रूप में लिया जाता है। 2008 की मंदी2011 का यूरोपीय संकट और 2013 में मंदी के दौर में भारत के कई मीडिया संस्थानों में कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी की गई। छंटनी का अर्थ उन्हें काम से बाहर करना है और उन्हें दी जाने वाली महावार राशि और कानूनी सुविधाओं पर खर्च होनी वाली राशि को मीडिया संस्थानों द्वारा बचाना है। 2013 की मंदी के हालात में दो तरह की स्थितियां सामने आई। कई मीडिया संस्थानों ने अपने चैनलसमाचार पत्रसमाचार पत्रों के नये संस्करण शुरू किए। दूसरी तरफ कई मीडिया संस्थानों में कर्मचारियों की छंटनी की गई। पहला प्रश्न है कि क्या मंदी मीडिया संस्थानों में कुछ खास संस्थानों को प्रभावित करता है दूसरा मंदी के हालात के दावे के बावजूद मीडिया संस्थान अपने विस्तार या दूसरे उद्योग धंधे में सक्रिय संस्थान मीडिया संस्थान स्थापित करने का फैसला क्यों करते हैंक्या छंटनी का फैसला किसी मीडिया कंपनी के वार्षिक आय-व्यय के ब्यौरे में नुकसान के आने की वजह से किया जाता है या नुकसान की आशंका के मद्देनजर किया जाता हैनेटवर्क -18 कंपनी ने आर्थिक स्थिति ठीक न होने का तर्क देकर छंटनी की ( नमूना तालिका देखें) जबकि वित्त वर्ष 2012-13 में टीवी 18 समूह को 165 करोड़ का सकल लाभ हुआ और बीते वर्ष में यह लाभ 75.9 करोड़ रुपये का था। हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड को 2013 की दूसरी तिमाही शुद्ध लाभ 24.91 करोड़ रुपये हुआ। टाइम्स ऑफ इंडियाहिन्दुस्तान टाइम्स और दूसरे जितने समूहों ने 2013 से पहले के कुछेक वर्षों में जितने कर्मचारियों की छंटनी की है उनके छंटनी के तर्कों और उन कंपनियों को होने वाले लाभ का विश्लेषण किया जा सकता है। टाइम्स ऑफ इंडियाहिन्दुस्तान टाइम्स आदि कंपनियां लगातार भारी मुनाफा कमा रही है।

सीआईआई एवं परामर्श फर्म पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के मुताबिक2012 में मनोरंजन एवं मीडिया उद्योग का आकार 96,500 करोड़ रुपये का था जो साल दर साल 20 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इसी रिपोर्ट का यह भी अनुमान है कि भारत का मनोरंजन एवं मीडिया उद्योग  2017 तक 2.25 लाख करोड़ रुपये तक हो जायेगा। फिक्की-केपीएमजी की रिपोर्ट 2013 के अनुसार मीडिया और मनोरंजन उद्योग 2012 में 2011 के मुकाबले 12.6 प्रतिशत बढ़ाकर 821 बिलियन रुपये हो गया है। 2017 के बारे में अनुमान है कि यह उद्योग 1661 बिलियन रूपये तक पहुंच जाएगा। वहीं भारत में विज्ञापन के मद में 2012 में 327.04 बिलियन रूपये खर्च किए गए।

इसी प्रकार यूरोपीय संकट के दौरान फिक्की-केपीएमजी की रिपोर्ट 2012 के मुताबिक मीडिया और मनोरंजन उद्योग 2011 में 2010 के मुकाबले 12 प्रतिशत बढ़कर 728 बिलयन रुपये का हो गया। 2011 में भारतीय मीडिया एवं मनोरंजन उद्योग ने 2010 के मुकाबले 12 प्रतिशत की दर से विकास किया। जब वैश्विक आर्थिक संकट आया हुआ था तब भी मीडिया और मनोरंजन उद्योग 2008 में 2007 के मुकाबले 12.4 प्रतिशत बढ़कर 584 बिलियन रुपये का हो गया । आउटलुक के पूर्व संपादक नीलाभ मिश्रा ने भी एक साक्षात्कार में यह माना है कि मंदी के दौरान उनकी पत्रिका आउटलुक के सर्कुलेशन पर कोई खास असर नहीं पड़ा। पत्रिका ने मंदी के दौरान मुनाफा कमाया। मीडिया संस्थानों को 2008-09 में मंदी के दौरान बढ़ी हुई दरों पर सरकारी विज्ञापन मिले और अखबारी कागज के आयत की ड्यूटी पर छूट भी मिली।



मंदी के दौरान छंटनी करने वाले मीडिया संस्थान
समूह
छंटनी
टीवी 18 समूह
350
ब्लूमबर्ग टीवी
30
आउटलुक मनी
14
दैनिक भास्कर
कई पत्रकार
पायनियर
35



मंदी के दौरान मीडिया कंपनियों का विस्तार
समूह
नई पहल
जी मीडिया
जी राजस्थान प्लस/एंड पिक्चर’/ अनमोल चैनल शुरू किया
जी मीडिया    
मौर्या टीवी के अधिग्रहण करने की अधिकारिक घोषणा की
लाइव इंडिया न्यूज चैनल
लाइव इंडिया’ अखबार लांच किया
टीवी 18 समूह
न्यूज 18 इंडिया’ (यू.के) को लांच किया
हिन्दुस्तान अखबार
रांची लाइव’ अखबार शुरू किया
सहारा इंडिया टेलीविजन नेटवर्क
समय राजस्थान’ चैनल लांच किया
टाइम्स टेलीविजन नेटवर्क
रोमेडी नाउ’ चैनल लांच किया

                                                                                         
                                                                                                                         जनमीडिया के नवम्बर 2013 के अंक प्रकाशित                                                           

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