-संजय
कुमार बलौदिया
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने कुछ
समय पहले ही आंकड़े जारी किए। जिसके अनुसार दिल्ली में पिछले साल 2012 के मुकाबले
2013 में 43.67 फीसदी अपराधिक मामलों में बढ़ोत्तरी हुई हैं। बढ़ते अपराधिक मामले
चिंता का विषय है। इन्हीं आंकड़ों में यह भी बताया गया है कि दिल्ली में 2012 के
मुकाबले 2013 में हत्या के मामलों में कमी आई है। 2012 में 504 हत्याएं हुई जबकि
2013 में 487 हत्याएं हुई। भले ही हत्या संबंधी मामलों में कमी आई हो, लेकिन 2013 में हत्या जैसे मामलों को अंजाम देने वाले लोगों में 96 फीसदी
लोग पहली बार अपराध करने वाले हैं। जिसमें सिर्फ 1.5 लोग ही ऐसे है जिनका पहले
अपराधिक रिकॉर्ड रहा है। अपराध के बढ़ते आंकड़ों से ज्यादा चिंताजनक यह है कि कैसे
लोगों में हिंसक प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
वहीं दिल्ली में 2012 में 680 बलात्कार की
घटनाएं हुई जबकि 2013 में बलात्कार की घटनाओं का यह आंकड़ा बढ़कर 1559 हो गया है।
2012 में 62 किशोरों को बलात्कार के मामलों में और हत्या के मामलों में 97 किशोरों
को गिरफ्तार किया गया। एनसीआरबी के आंकड़ो के अनुसार 2012 में भारतीय दंड संहिता
के तहत अपराधों के आरोपों में 18 साल से कम आयु के 35465 किशोर गिरफ्तार किए गए।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक ही 2002 में बलात्कार मामले में 485 किशोर संलिप्त
थे जबकि 2012 में यह आंकड़ा बढ़कर 1,175 हो गया। ठीक इसी प्रकार 2002 में हत्या के
मामले में 531 किशोरों को गिरफ्तार किया गया, जबकि
2012 में यह आंकड़ा बढ़कर 990 हो गया है। इसी प्रकार अन्य अपराधों में भी किशोरों
की संलिप्तता बढ़ती जा रही है।
एनसीआरबी के आंकड़ों से यह बात स्पष्ट हो
जाती है कि किशोरों की अपराधों में संलिप्तता तेजी से बढ़ती जा रही है। वहीं नए
लोगों द्वारा हत्या जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने के मामलों में भी बढ़ोतरी हो
रही है। हमें अब अपराध के आंकड़ों को कम करने के साथ-साथ यह भी सोचना होगा कि
किशोरों व नये लोगों की अपराधों में संलिप्तता को कैसे रोका जाए।
एक रिपोर्ट के मुताबिक कई बार किशोर,
अपराध गुस्से के कारण या बदला लेने के लिए करते हैं और कई बार तो फिल्मों में देखे
गए दृश्यों की नकल करने के लिए भी करते हैं। किशोरों को पारिवारिक वातावरण और उनके
आसपास की परिस्थितियां ही उसे अच्छा या बुरा नागरिक बनाती है। वहीं अकेलापन और
उपेक्षा किशोरों को अपराधिकता की ओर धकेलती है। अकेलापन किशोरों को क्रूर बनाता
है। जिससे वह नशा करने और अपराधिक गतिविधियों में संलिप्त होने लगते है। इन वजहों
से भी आज किशोरों और नए लोगों की बलात्कार, हत्या
जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्तता बढ़ती जा रही है।
आमतौर पर कहा जाता है कि निम्न आर्थिक
वर्ग से संबंधित किशोर और लोग ही अपराधों को अंजाम देते है। यह बात एक हद सही हो
सकती है। लेकिन यह भी सच है कि अब पढ़े-लिखे किशोर और नए लोग भी अपराधों को अंजाम
देने में पीछे नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि आज के माता-पिता भौतिकता और
महत्वकांक्षा की अंधी दौड़ में लगे हुए हैं, जिससे
वह अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। जिससे बच्चों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल
पाता है। जिससे युवा भटक जाते है। आज के प्रतिस्पर्धा के युग में युवा भी ढेर सारी
भौतिक सुख-सुविधाओं को पाने की अंधी दौड़ में लगे हुए है। वह इन सुख-सुविधाओं को
पाने के लिए अपराध की दुनिया की ओर भी आकर्षित हो रहे हैं। अपराधों के बढ़ने का एक
कारण अपराधी को दण्डित किये जाने और न्याय सुलभता की दर का नीचे गिरना भी है।
किसी भी कानून से अपराधों को कम तो किया
जा सकता है लेकिन खत्म नहीं किया जा सकता। आपराधिक मानसिकता को कानून के जरिए खत्म
नहीं किया जा सकता। हमें किशोरों को स्वस्थ व सुंदर समाज देना होगा, तभी वह अपराधिक मानसिकता से मुक्त हो पाएंगे।
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