रविवार, 10 मई 2015

तकनीकी उपायों के भरोसे महिलाओं की सुरक्षा बेमानी



पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा सरकार की कथित प्राथमिकता और बौद्धिक जगत के बहस के दायरे में है। लेकिन यह दायर बेहद सिमटा हुआ है। इस सुरक्षा चिंता के दायरे में सिर्फ शहरी महिलाएं, वो भी कामकाजी महिलाएं होती हैं। सुदूर ग्रामीण इलाकों और कमजोर तबके की महिलाओं के लिए सुरक्षा बंदोबस्त या बहस सिर्फ कोरम पूरा करने के लिए जाहिर होता है। असल धरातल पर कार्रवाई सिफर है। जिस तरह के तमाम उपाय महिलाओं की सुरक्षा के लिए किए जा रहे हैं चाहे वह एप हो, सुरक्षा उपकरण या सीसीटीवी कैमरा हो। कहा जाता है कि एप या सुरक्षा उपकरण का इस्तेमाल करके महिला अपनी सुरक्षा कर सकती है। लेकिन सवाल यह है कि घरेलू महिलाओं और गांव की महिलाओं का क्या होगा जिनके पास शायद मोबाइल भी नहीं होता है और उनके पास सुरक्षा उपकरणों को खरीद पाने की क्षमता भी नहीं होती। वैसे भी इन एप्पस का दायरा सिर्फ शहरी कामकाजी महिलाओं तक ही सीमित है। एकबारगी यह बात मान भी ली जाए कि घरेलू महिलाओं और गांव की महिलाओं के पास स्मार्टफोन हो। तब भी एक अहम सवाल उठता है कि वह इन एप्पस का इस्तेमाल कैसे कर पाएंगी। हर नई तकनीक को समझने या सिखने के लिए प्रशिक्षण की जरूरत होती। जब तक महिलाएं इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल करना नहीं जान पाएंगी, तब तक यह बात कैसे कही जा सकती है कि इन एप्पस या सुरक्षा उपकरणों के जरिए कोई महिला अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है। आइआइटी-दिल्ली और दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने महिला सुरक्षा से जुड़ा एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जिसे हाथ में कलाई घड़ी या गले में नेकलेस की तरह पहना जा सकता है। और भी न जाने कितने उपकरणों महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए जा रहे हैं।

महिलाओं की सुरक्षा को पूरी तरह से तकनीक और सुरक्षा उपकरणों पर निर्भर बनाने की कोशिश की जा रही है जिसमें सीसीटीवी कैमरे, एप्पस, सुरक्षा उपकरण, जीपीएस सिस्टम जैसी तकनीक शामिल है। तकनीक और उपकरणों का इस्तेमाल महिलाओं की सुरक्षा के लिए किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि देश के हर राज्य की सरकारें तकनीक और सुरक्षा उपकरणों के भरोसे ही महिला की सुरक्षा की बात कर रही हैं। हर राज्य में महिलाओं की सुरक्षा का तर्क देकर सीसीटीवी कैमरों को लगाया जा रहा है, जबकि विकसित देशों तक में सीसीटीवी कैमरे के इस्तेमाल के वाबजूद अपराध दर में कोई खास कमी नहीं आई है। साथ ही कई राज्य सरकारों ने एप्प भी लांच किए हैं, उदाहरण के तौर पर हम देख सकते है कि दिल्ली में महिलाओँ की सुरक्षा के लिए हिम्मत एप, चड़ीगढ़ में 24*7 एप और उत्तर प्रदेश में 1090 एप। इसके अलावा न जाने कितने एप्पस हैं, जिनके जरिए महिलाओं की सुरक्षा की बात की जा रही है। दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के लिए लांच हिम्मत एप को एक महीने में तीन हजार से ज्यादा लोगों ने डाउनलोड किया, लेकिन एप के जरिए मदद के लिए किसी ने भी इसका इस्तेमाल नहीं किया।  

इन एप का उपयोग स्मार्टफोन और इंटरनेट के बिना असंभव है। द इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक दिसम्बर 2014 तक मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 17.3 करोड़ है। यह आंकड़ा बताता है कि देश की आबादी के हिसाब अब भी मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या काफी कम है। मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली आबादी में भी गांवों के मुकाबले शहरी आबादी का प्रतिशत ज्यादा है। तब फिर कैसे हम महिलाओं की सुरक्षा के लिए एप लांच करके निश्चित हो सकते हैं। 

हमारा समाज संवेदनहीन होता जा रहा है। क्योंकि कई घटनाएं लोगों के सामने होती है, लेकिन लोग घटना को मूक दर्शक बनकर देखते रहते बजाए इसके कि वह मदद करें। जब तक हम लोग संवेदनशील नहीं होंगे। साथ ही हम लोग एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे और जब तक हम लोग पुलिस का साथ नहीं देंगे तब तक इस तरह की घटनाओं में कमी नहीं आ सकती। साथ ही पुलिस को भी अपनी छवि सुधारनी होगी, ताकि पुलिस और जनता के बीच बेहतर संबंध कायम हो सकें। पुलिस सुधार पर ज्यादा बल दिया जाए और पुलिस को संवेदनशील बनाने की कोशिश की जानी चाहिए। पुलिस सुधार को लेकर बनी कमेटियों की सिफारिशों को अमल में लाया जाना चाहिए। तभी इस तरह की घटनाओं को रोक जा सकता हैं।

इन तकनीकी उपायों के जरिए भी महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए किसी न किसी पर निर्भर ही रहेंगी जैसा पहले से होता आ रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब तकनीक के जरिए महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए किसी से मदद मांगेगी। 

महिलाओं की सुरक्षा के लिए यह भी जरूरी है कि उन्हें आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिया जाए, ताकि वह खुद अपनी रक्षा कर सकें। अभी हाल ही में दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस-बल में अराजपत्रित स्तर तक की सीधी नियुक्तियों में महिलाओं के लिए तैंतीस फीसद आरक्षण के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है, जोकि महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक बेहतर कदम है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें